पढ़िये भारतीय ज्योतिष – पाश्चात्य (पश्चिमी देशों की ज्योतिष ) से श्रेष्ठ क्यों ? Yogesh Mishra

भारतीय ज्योतिष – पाश्चात्य ज्योतिष से श्रेष्ठ क्यों ?

आज कल हम भारतीय ज्योतिष को मिथ और पाश्चात्य ज्योतिष को वैज्ञानिक मान कर उसे अपना रहे हैं जबकि सत्य यह है कि भारतीय ज्योतिष पूर्णतया वैज्ञानिक और अपने मूलभूत आधारों पर स्पष्ट है मात्र इसके प्रचार-प्रसार की आवश्यकता है. पाश्चात्य ज्योतिष को अवैज्ञानिक तथा अव्यवहारिक है जिसके कुछ उदाहरण निम्न हैं-

*भारतीय पद्धति में गणनाएं सापेक्षता के सिधान्त पर पृथ्वी को स्थिर मानकर किया जाता है क्योंकि हम पृथ्वी पर निवास करते हैं . पाश्चात्य ज्योतिष में सूर्य को केंद्र में स्थिर मानकर गणनाएं की जाती है, जिसके चारों ओर सभी ग्रह अलग अलग समयों में अपना चक्कर पूरा करता है . अब यह माना जा रहा है कि सूर्य भी अन्य ग्रहों के साथ निहारिका में भ्रमण कर रहा है . .

*भारतीय मत के अनुसार नक्षत्र मंडल में दूरियों की गणना एक स्थिर बिंदु से की जाती है . यह बिंदु अश्विनी नक्षत्र की मेष राशि है, जिसकी शुरुआत १४ अप्रैल से होती है. पश्चिम में यह शून्य बिंदु गतिशील है. यहाँ राशि चक्र की पहली राशि मेष की गणना २२ मार्च के बाद से की जाती है . पाश्चात्य मत में मेष का प्रथम बिंदु भारतीय मत से मीन राशि के ६ १/४ डिग्री पर स्थित है .

इस स्थिर (निरायण) एवं चलायमान (सायन) मेष के प्रथम बिंदु के बीच की कोणीय दूरी को अयनांश कहते हैं.

  • एक प्रमुख अंतर यह है कि भारतीय ज्योतिष निरायण पद्धति को मान्यता देता है, निरायण पद्धति स्थिर भचक्र (नक्षत्रों के भचक्र) को स्वीकृत करता है.
    पाश्चात्य ज्योतिष सायन पद्धति पर आधारित है. सायन पद्धति खगोल विज्ञान की वह पद्धति है जो चलित भचक्र (राशि-चक्र) को मान्यता देती है.
  • दोनों पद्धतियों में समय की माप में अंतर है. भारतीय मत में एक सूर्योदय से दुसरे सूर्योदय तक के समय को एक दिन माना जाता है. पाश्चात्य मत में एक दिन की गणना मध्य रात्रि में पृथ्वी की घूर्णन गति के अनुसार की जाती है.
  • भारतीय ज्योतिष की जड़ें खगोल शास्त्र में निहित है, पश्चिम में खगोल एक भौतिक विज्ञान की तरह विकसित हुआ. दोनों ही मतों में ग्रहों की गति एवं स्थिति मापने की कोशिश की गई -एक में कोणिय गति व दुसरे में रैखिक गति.
  • निरायण पद्धति जटिल स्थितियों के विश्लेषण एवं समाधान हेतु उपयुक्त है. भारतीय ज्योतिष पद्धति में भविष्य कथन हेतु अनेक वर्ग एवं वर्गीय कुंडलियों का अध्ययन व प्रयोग किया जाता है ,साथ ही घटनाओं के सत्यता परीक्षण व निरीक्षण के लिए अनेक दशा पद्धतियाँ उपलब्ध हैं .
    पाश्चात्य ज्योतिष की सायन पद्धति में यह सुविधा नहीं है यह सन्निकट परिणामों तक ही पहुँच सकती है.
  • भारतीय ज्योतिष में ९ मुख्य ग्रह हैं- सूर्य,चन्द्र,मंगल ,बुध,वृहस्पति ,शुक्र,शनि, राहू एवं केतु. पाश्चात्य ज्योतिष में धूमकेतु व छुद्र ग्रहों के अलावे १० मुख्य ग्रह हैं-उपरोक्त सात ग्रहों के अलावे युरेनस ,नेप्चून एवं प्लूटो. यहाँ राहू व केतु को केवल चन्द्रमा के पात(nodes ) माने जाते हैं, उन्हें ग्रहों का दर्ज़ा प्राप्त नहीं है.
  • भारतीय ज्योतिष में घटनाओं के फलित होने के समय निर्धारण के लिये महादशा चक्र की व्यवस्था है पाश्चात्य ज्योतिष में ऐसा नहीं है.
  • भारतीय ज्योतिष में मंगल को मेष व वृश्चिक ,वृहस्पति को धनु व मीन एवं शनि को कुम्भ व मकर का स्वामित्व दिया गया है. वहीँ पश्चिमी पद्धति में युरेनस,नेप्चून एवं प्लूटो को क्रमशः कुम्भ, मीन एवं वृश्चिक का स्वामित्व बतलाया गया है
  • हमारे यहाँ गोचर के साथ साथ दशा-अवधि व योगों का भी सूक्ष्म अध्ययन किया जाता है जबकि पश्चिमी मत में भविष्य कथन हेतु ग्रहों के गोचर (ग्रहों की निवर्तमान स्थिति) एवं दिशा मुख्य सन्दर्भ बिंदु होते हैं जो नितांत अवैज्ञानिक है

हालाँकि दोनों ही पद्धतियाँ प्रयोग में हैं लेकिन जब अधिक सटीक गणना , विश्लेषण एवं व्याख्या की बात होगी तो भारतीय ज्योतिष निर्विवाद रूप से श्रेष्ठ है.इसीलिये हम सटीक भविष्यवाणियां कर लेते हैं

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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